मैत्रेयी इतनी इर्ष्यालू थी कि वह नजर रखती थी कि राजेंद्र जी के पास कौन आ रहा है (?)

स्त्रीकाल डेस्क 

मैत्रेयी पुष्पा की किताब ‘वह सफ़र था कि मुकाम था’  हंस के संपादक राजेंद्र यादव  से उनकी जगजाहिर घनिष्ठता को स्पष्ट करती हुई एक रेफरिंग दस्तावेज है. लेकिन  ऐसे  दस्तावेज  होने की संभावनाओं के साथ लिखी गई किताबों में गल्प और किस्सागोई नहीं होने चाहिए, जिससे मैत्रेयी जी ने इस किताब को भर दिया है- ऐसा लगता है. किताब का एक अंश समालोचन  में प्रकाशित हुआ है, जो राजेंद्र जी की पत्नी और लेखिका मन्नू भंडारी के प्रति विद्वेष से भरा है. यह अंश राजेंद्र यादव  के बीमार होने और हॉस्पिटल में दाखिल होने से शुरू होता है और आगे मन्नू  जी के खिलाफ प्रलाप करते हुए राजेंद्र जी से लेखिका की अंतरंगता, सखी-भाव को बताते हुए बढ़ता है. सखी-भाव का आश्रय है राजेंद्र यादव की ”मीता.’ जिनके संदर्भ में मैत्रेयी जी का दावा है कि उन्होंने उन्हें देखा है. स्त्रीकाल ने राजेंद्र जी की बीमारी के चश्मदीदों, उनकी सेवा में लगे लोगों से बात कर मैत्रेयी की दावे की सत्यता की पडताल की. तथ्यों के आधार पर अपनी पहली रपट में स्त्रीकाल  ने स्पष्ट कर दिया कि हिन्दी अकादमी की उपाध्यक्ष और साहित्यकार मैत्रेयी  जी झूठ रच रही हैं. इस क़िस्त में हम उन दिनों राजेंद्र जी के आस-पास रहे उनके आत्मीय लोगों के हवाले से समझते हैं कि मैत्रेयी अपने संस्मरण में कितना प्रतिशत कल्पना डाल रही हैं-पता नहीं किस उद्देश्य से. पिछली क़िस्त में हमने देखा कि राजेंद्र जी को अस्पताल ले जाने का मैत्रेयी का दावा किस तरह झूठा और काल्पनिक है, वैसे ही मन्नू जी पर किया गया उनका प्रहार भी विद्वेषपूर्ण है:

वेददान सुधीर 

मैत्रेयी पुष्पा खुद को खुदा समझने लगी हैं, वे भूल गईं कि राजेंद्र जी ने उन्हें स्थापित किया है. जब राजेंद्र यादव अपस्ताल में भर्ती हुए तब मैं भी अस्पताल पहुँच गया था. यह सच है कि मैत्रेयी पुष्पा की बेटियाँ एम्स में थीं. मैत्रेयी के पति की अस्पताल में भूमिका जरूर थी मदद करने की, लेकिन मन्नू भंडारी के बारे में उसके दावे सर्वथा झूठे हैं. मन्नू जी अक्सर राजेंद्र जी के खाने-पीने से लेकर हर बात का ख्याल रखती थी. उनका रूटीन था किशन से जानना कि राजेंद्र जी  को क्या खिलाया ? मैत्रेयी इर्ष्यालू भी हैं.  वे मन्नू जी पर कीचड़ उछाल रही हैं. वे कुत्सित विश्लेषण की विशेषज्ञ हैं. अपने को सही ही सिद्ध करना  था मन्नू जी को तो उन्होंने राजेंद्र जी को खुद से अलग क्यों किया होता !  नगीना को मैंने बहुत कम ही देखा है. नगीना खुद भी मन्नू जी का सम्मान करती थीं. राजेंद्र यादव अस्पताल से निकलकर अपनी बेटी रचना के यहाँ गये . राजेंद्र जी उन्मुक्त पक्षी थे, वे किसी की परवाह नहीं करते थे. उन्होंने अपने घर जाने को तय किया तो उन्हें कौन रोक सकता था. उन्हें मैत्रेयी की भी परवाह नहीं थी. मैत्रेयी इतनी इर्ष्यालू थी कि वह नजर रखती थी कि राजेंद्र जी के पास कौन आ रहा है. एक स्त्री थीं, पत्रकार, उनके राजेंद्र जी से मिलने आने पर वह चौकन्नी हो जाती थी. मन्नू जी को किसी के लायसेंस की जरूरत नहीं थी. राजेंद्र जी और मन्नू जी के रिश्तों की तरह मैंने कोई रिश्ता नहीं देखा. मैत्रेयी चाहती थी कि वह राजेन्द्र जी की ख़ास मित्र बने,सबसे प्रिय. राजेंद्र जी ने उसकी साहित्यिक मदद भी खूब की.

किशन
राजेंद्र जी की बीमारी की खबर सुनकर सुधीश पचौरी उनके घर आ गये थे. और नवभारत टाइम्स में रहने वाले पुनीत टंडन और आभा टंडन भी आ गये थे, जिनकी हैदराबाद ब्लास्ट में बाद में मौत हो गई. राजेंद्र जी के अस्पताल में भर्ती होने के बाद उनकी देखभाल मन्नू जी और रचना दी ने की. मैं तब बहुत छोटा था. इतना समझ नहीं पाता था लेकिन यह तो है कि मैत्रेयी जी के पति और उनके बच्चों के एम्स में होने से कुछ मदद मिली थी. बाबूजी को पहले जेनरल वार्ड में एडमिट किया गया था फिर उन्हें कमरा मिला , क्योंकि उन्हें देखने कुछ बड़े लोग आने वाले थे, चन्द्रशेखर, लेकिन वे आ नहीं पाये. सुषमा स्वराज  आई थीं, दो मिनट के लिए- ( हालांकि अरविंद जैन की याद से सुषमा ने बुके और एक कार्ड भिजवाया था, वे खुद नहीं आ पायीं थीं) .मन्नू जी लगभग दिन भर रहती थीं.

जब बीमार हुए थे बाबूजी तो मैंने सबको खबर कर दी थी. उस समय मोबाइल तो नहीं था न, लेकिन मैंने फोन कर दिया था. मैं बच्चा सा था उस समय, बहुत घबड़ा गया था. सुधीश पचौरी तुरत आ गये थे. सुधीश जी ने उनको फोन किया था. मैत्रेयी जी के बच्चो के होने से डाक्टरों से आसानी से अपॉइंटमेंट मिल जाता था.

केजरीवाल सर, हिन्दी अकादमी में आपकी उपाध्यक्ष साहित्यिक झूठ खड़ा कर रही हैं? (मन्नू-मीता-मैत्रेयी के सच की खोज)

शिव कुमार शिव : 
एक दिन बाद जब मै दिल्ली पहुंचा उस समय वह जेनरल वार्ड  से कमरे मे आ गए थे। उस समय जब मै वहाँ पहुँचा तब वहां  मैने देखा कि मन्नू जी हैं, महेश दर्पण हैं, और अरविंद जैन हैं। 2 रातो तक उनकी देखभाल महेश दर्पण ने की थी और फिर मै वहाँ स्थाई रूप से रहने लगा । मैत्रेयी  जी का कहीं नामो निशान नही था । लगभग 5 दिन बाद शाम को 4 बजे मैत्रेयी  जी गुप्त रूप से राजेंद्र जी से मिलने पहुंची । जब वह कमरे में थी, तब मै चौकीदारी कर रहा था। उन्हे याद हो तो आधे घंटे के बाद मैंने उन्हे गाड़ी मे बिठा दिया था । यह कहना लाज़िमी होगा कि उनकी देखभाल और संभाल का पूरा जिम्मा मन्नू जी का था । मैत्रेयी को तो उनकी बीमारी का पता बहुत दिन बाद चला । हालांकि इस बीमारी के दौरान के कई प्रसंग है जो अद्भुत भी हैं और रोचक भी.  लेकिन वे कहीं  नही हैं,  जो इतना झूठा शोर मचा रही है । उनके जिंदा रहते तो आपने उनका लेखकीय शोषण किया अब मुर्दे को तो बख्श दो यार !

इन बयानों को पाठक आत्मकथा अंश के पहले हिस्से से जोड़कर पढ़ सकते हैं, जिसमें मैत्रेयी जी राजेंद्र जी का शुगर टेस्ट कराने के बाद अपने पति द्वारा उन्हें एम्स में भर्ती कराने का उल्लेख करती हैं, जो किसी भी तथ्य से पुष्ट नहीं होता. यानी मैत्रेयी जी झूठ रच रही हैं.

स्त्रीकाल में क्रमशः जारी

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