–लेखन मेरे लिए पहले और अंतिम विकल्प की तरह है — भालचन्द्र जोशी

हिन्दी त्रैमासिक पत्रिका ‘कथाक्रम’ का तैंतीसवां वार्षिक समारोह 7 दिसंबर को लखनऊ के कैफ़ी आज़मी सभागार में आयोजित किया गया , जिसमें वरिष्ठ कथाकार श्री भालचंद्र जोशी को ‘आनंद सागर स्मृति सम्मान’ प्रदान किया गया | श्री भालचंद्र जोशी को सम्मान स्वरूप मानपत्र और रु.21000 प्रदान किये गए | सम्मान समारोह में अध्यक्ष के रूप में प्रसिद्ध आलोचक श्री वीरेंद्र यादव, मुख्य अतिथि के रूप में कथाकार श्री शिवमूर्ति आमंत्रित थे | सम्मानित कथाकार भालचंद्र जोशी ने अपने वक्तव्य में शैलेंद्र सागर और कथाक्रम सम्मान से जुड़े सभी लोगों के प्रति कृतज्ञता प्रकट की और उन्होंने कहा कि ऐसे ही लोग और ऐसे ही संस्थाएँ हैं , जो पुरस्कार और सम्मानों की प्रतिष्ठा बचाए हुए है । अपने लेखन के बारे में उन्होंने कहा कि – “लिखना मेरे लिए पहले और अंतिम विकल्प की तरह है क्योंकि इसके सिवा मुझे कुछ आता भी नहीं है । मेरे लिए शब्दों का संसार ही अंतिम विकल्प है । लेखन मेरी अंतिम शरणस्थली है । लेखक के लिए लिखने से बड़ा सुख कुछ भी नहीं है । एक लेखक जो दुनिया में हारता है या जो दुनिया से हारता है , अपने जैसे सैकड़ो , हजारों , असंख्य लोगों को हारते हुए देखता है तो लेखक उसकी विजय का स्वप्न लेखन में देखता है ।संभवतः इसी स्वप्न में लेखन की सार्थकता और सामाजिकता छिपी होती है । दुष्टता की ललक के बीच शब्द ही आसरा देने आते हैं । कला और कला -अभ्यास अलग-अलग चीजें हैं । जो व्यक्ति एक जैसी सैकड़ो मूर्तियाँ बना लेता है वह कला का अभ्यास है लेकिन मेरे लिए हर कहानी एक बड़ी चुनौती की तरह सामने होती है । हर बार उसके लिए पहली रचना की तरह ही श्रम करना पड़ता है । मेरे जीवन का लंबा हिस्सा आदिवासियों के बीच घने जंगलों में बीता है इसलिए मेरे भीतर भी आदिवासियों की तरह एक जंगली संकोच मौजूद है , जो शहरी संपर्क में दाखिल होने पर प्रकट होता है ।”
भालचंद्र जोशी के कृतित्व पर बोलते हुए सुप्रसिद्ध कथाकार रूपा सिंह ने कहा – “भालचन्द्र जोशी एकमात्र ऐसे कहानीकार हैं जिनकी कहानियाँ गंभीर और गहरे सरोकारों से जुड़ी हैं । वे हिंदी के संभवतः पहले ऐसे कहानीकार हैं , जिनकी कहानियों में छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के आदिवासियों के जीवन के अभाव , दुख और संघर्ष इतने गहरे यथार्थ और मानवीय मार्मिकता के साथ आए हैं ।” सुप्रसिद्ध कथाकार शिवमूर्ति ने कहा कि कथाक्रम सम्मान के लिए बहुत तठस्थता से चुनाव होता है । और संबंधित लेखक की रचनात्मकता को गंभीरता से देखा परख जाता है । और निर्णय लिया जाता है । इस बार भालचन्द्र जोशी के चयन पर सब लोग एक मत से सहमत थे और इस बात की हम सब लोगों को प्रसन्नता है । कार्यक्रम के संयोजक तथा कथाक्रम पत्रिका के संपादक शैलेंद्र सागर ने अपने वक्तव्य में कहा कि लिट फेस्ट जैसे चकाचौंध वाले कार्यक्रमों की तुलना में सादे ढंग से आयोजित इस सम्मान समारोह को लेखक और पाठकों का भरपूर प्यार मिला है । चकाचौंध की होड़ में हम नहीं हैं । कथाक्रम सम्मान का यह तैंतीसवाँ वर्ष है और भालचन्द्र जोशी को यह सम्मान देते हुए हम सब लोगों को बेहद प्रसन्नता है । कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे सुप्रसिद्ध आलोचक वीरेंद्र यादव ने कहा कि – भालचंद्र जोशी ने ग्रामीण जीवन और सांप्रदायिकता जैसे विषयों को लेकर बहुत गंभीरता से लिखा है । उनकी ‘रिहाई’ कहानी और ‘जस का फूल’ जैसा उपन्यास सांप्रदायिकता के विषयों को बहुत गंभीरता से प्रस्तुत करता है । उन्होंने इसी संदर्भ में प्रेमचंद का स्मरण किया और कहा कि वैसे ही दायित्व बोध भालचंद्र जोशी की कहानियों में मौजूद है । और इनकी रचनाएँ गंभीर सरोकारों से जुड़ी हैं । सत्र का संचालन इरा श्रीवास्तव ने किया ।
प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी ‘आनंद सागर स्मृति सम्मान’ के अवसर पर ‘हिन्दी साहित्य और जनपदीय भाषाएँ ‘ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया । इस सत्र में प्रो. राजकुमार ने साहित्य और जनपदीय भाषाओं के अंतर्संबंधों पर बात की । लोक बाबू ने छत्तीसगढ़ की बोलियों के नष्ट होने के खतरे की ओर संकेत किया । अवधेश मिश्र ने जनपदीय भाषाओं की आंतरिक संरचना पर बात रखी । ईश्वर सिंह दोस्त ने कहा कि यह सिर्फ अकादमी चिंता की बात नहीं है। इसके अतिरिक्त जगदीश्वर चतुर्वेदी ,कालीचरण सनेही , प्रो. रामबहादुर मिश्र , सुश्री सुजाता , परमेश्वर वैष्णव , प्रकाश उदय ने भी इस विषय पर वक्तव्य दिए ।
सत्र संचालन प्रो. श्रुति तथा नलिन रंजन सिंह द्वारा किया गया |
और संपूर्ण कार्यक्रम के अंत में वीरेंद्र सारंग ने लेखन और श्रोताओं का आभार व्यक्त किया ।
