वनमाली कथा के अगस्त2025 अंक में युवा कथाकार वैशाली थापा की कहानी “नीले गुलाब का संगीत” की समीक्षा
वनमाली कथा के अगस्त2025 अंक में युवा कथाकार वैशाली थापा की कहानी “नीले गुलाब का संगीत” पढ़ी। ऐसा लगा ताजी हवा का खुशबूदार झोंका चेहरे को छूकर निकल गया। एक प्रतिभाशाली, संगीत प्रेमी लड़की ऐसी ही कल्पना कर सकती है। कहानी का नायक बहुत रसूखदार घराने का दिखाया गया है। वह अपने अमीर और पाई-पाई जोड़ने वाले परिवार से ऊबा हुआ है। प्रकृति, संगीत, कलाएं, उसे आकर्षित करते हैं। मात्र 10 वर्ष की उम्र में “मोगरे के फूल” पर लिखी कविता इसे प्रमाणित करती है। परिवार की समृद्धि और हिसाब किताब का एक नमूना देखिए। “मेरे लिखे को बड़े संदेह से देखकर, उन हवेली वालो ने, मेरे ही सामने नष्ट कर दिया। सफाई में कहा गया कि मैं स्टेशनरी खराब कर रहा हूँ। उन कागजों और स्याही से कई सारी दी गई उधारी का हिसाब हो सकता था।”01 एक ऐसे नीरस परिवार को छोड़कर, नायक एक नए शहर के गुमनाम मोहल्ले में किराए पर रहने लगा। वह कहता है “मैं इस शहर आया था, सिर्फ उस एक ही लय में बजने वाली जंजीरों से बचने के लिए, जो इंसान को कुछ नया नहीं करने देती।”02 यह नया करना ही मनुष्य के मनुष्य होने की पहचान है। संवेदनशील और भावुक नायक को अपनी पसंद के गीत, सामने की बालकनी से बजते हुए सुनाई देते हैं। आश्चर्य है कि, सामने की बालकनी में रहता शख्स उसकी पसंद कैसे जानता है। जबकि उसकी मित्र मंडली में, उसकी पसंद के गीत, किसी को पसंद नहीं। “मेरे सारे दोस्त मेरे पसंद के गानों से खींझते थे। वह लोग वही सुनते थे, जिससे मेरा सिर दर्द करता था। वह मुझे संगीत की पसंद के मामले में एक वृद्ध व्यक्ति समझते थे।”03 नायक की यह पसंद उसकी माँ की देन है। उसकी माँ को मेहंदी हसन की गजलें, रजिया सुल्तान के गीत, पसंद थे। वह टेप रिकॉर्डर पर सुनती थी। परंतु दकियानूस परिवार ने उससे टेप रिकॉर्डर छीन लिया। संभवत जेनेटिक प्रभाव के कारण नायक को यह गजलें पसंद हैं। परंतु वह सामने की बालकनी वाले को कैसे पता?? यह रहस्य है।

कुछ दिनों बाद नायक उस गीत बजाने वाले को देख पाता है। वह एक बेहद खूबसूरत लड़की है। हमेशा चुपचाप रहती है। उसकी बालकनी का नीला गुलाब एक रहस्य है। नायक ने सफेद, गुलाबी, लाल रंग के गुलाब देखे थे, परंतु नीला गुलाब कभी नहीं देखा था। मकान मालिक की डरावनी शक्ल और घूरती लाल आँखों के बावजूद, नायक उस लड़की से पहचान बढ़ाता है। दोनों की पसंद एक जैसी, विचार एक जैसे हैं। दोनों में दोस्ती होती है।साथ घूमना, खाना पीना, शॉपिंग करना, शुरू होता है। नायक के लिए सबसे महत्वपूर्ण और अजीब बात थी- “बातें जो पल प्रतिपल प्यार को पोषित कर रही थीं। बातें जिनकी देह नहीं थी, और देह नहीं थी, तो वासना नहीं थी। मैंने पहले कभी किसी लड़की से इतनी सारी बातें नहीं की। पहले लड़कियों से जब मिलता था, पहले उनकी देह दिखती, फिर सुंदरता, और फिर कुछ छोटी-मोटी बातें। यहाँ सब उलट था। पहले बातें थी, विचार थे, फिर खूबसूरती थी, फिर चुप्पी थी। देह का फिलहाल कहीं कोई निशान नजर नहीं आता था।”04 तो यह इस कहानी की सबसे महत्वपूर्ण बात है। स्त्री देह के अलावा भी बहुत कुछ है। उसके विचार, उसके गुण, उसकी पसंद-नापसंद। वह एक मोम की गुड़िया नहीं है, जो जरा सी आँच से पिघल जाए। परंतु पितृसत्तात्मक पुरुष वर्ग, स्त्री की केवल सुंदरता देखता है। रंग-रूप देखता है। कहानी के अन्य पात्र- मकान मालिक, नायक/नायिका के मित्र नंदू, राघव, नायक के पिता, इसी पुरुष वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। नंदू को अपने पिता और दूसरी महिला दोनों पर भरोसा नहीं। राघव अपने से बड़ी उम्र की लड़की से प्रेम करता है, परंतु वह प्रेम वासना रहित नहीं है। नायक के पिता को, उसकी माँ का टेप रिकॉर्डर पर गीत सुनना पसंद नहीं है। वह उसके गीत सुनने पर पाबंदी लगा देते हैं। कहानी में एक संवाद है- “ऊपर वाला औरतो को इतने दुख क्यों देता है?
मैंने सिर्फ दूसरे प्रश्न का उत्तर दिया – क्योंकि शायद जिसने यह दुनिया बनाई, वह भी मर्द ही था।”05
कहानी चरम पर आती है। अब नायक की बजाय, नायिका के दृष्टिकोण से कही जाती है। एक लड़की अपने लिए कैसा प्रेमी चाहती है? ऐसा जो उसे पूरी तरह समझे। उसकी भावनाओं की कदर करे। उसके विचारों का सम्मान करे। ऐसा लड़का वास्तविक दुनिया में मिलना मुश्किल है। नायक का यह संवाद बहुत महत्वपूर्ण है- “उसकी पुकार सुनते हुए मुझे लगा, वह और कोई नहीं था। उस पार मैं ही था। मैं ही वहाँ सारे गीत सुन रहा था। मैं ही था, जो मैं को बुला रहा था।”06 अंत में नायिका/नायक के मित्र राघव और नंदू उसकी मदद करते हैं। कल्पना और वास्तविकता में अंतर समझाते हैं। यहीं नीले गुलाब का रहस्य भी खुलता है। परंतु एक और रहस्य पाठकों के मन में रह जाता है। “अगली सुबह मैं उस घर में गयी। सीढ़ियों से होते हुए, उसके कमरे तक। मैंने दरवाजा खोला। होश फाख़्ता हुए। कमरे के दृश्य ने आत्मा को आतंकित किया। पैरों के नीचे की जमीन, बर्फ़ की तरह चटक गयी। वह कमरा रंगा हुआ था, पूरा रंगा हुआ।”07
कथानक बिल्कुल कसा हुआ है। कहीं व्यर्थ के प्रसंग नही हैं। रोचकता अंत तक बनी रहती है। रहस्य ऐसे, कि एक बैठक में कहानी पूरी किए बिना, आप कहीं हिल भी नहीं सकते। शिल्प भी एकदम नया है। ‘वैशाली थापा’ ने सिद्ध किया है, कि नयी पीढ़ी कहानी के नए शिल्प और नए तेवर लेकर आई है। गीता श्री के शब्दों में “कथा की नई पीढ़ी आ चुकी है। लैंड कर चुकी है। कथा की जमीन पर नया तेवर, नया कंटेंट, नया शिल्प भी। सब कुछ अलग पहले से।”08 हालाँकि यह टिप्पणी, वनमाली कथा के एक अन्य युवा विशेषांक पर है, परंतु “वैशाली थापा” की कहानी “नीले गुलाब का संगीत” पर भी पूरी तरह फिट होती है।
संदर्भ सूची
1.वनमाली कथा, अगस्त 2025 पृष्ठ संख्या 97
2.वही पृष्ठ संख्या 96
3.वही पृष्ठ संख्या 97
4.वही पृष्ठ संख्या 104
5.वही पृष्ठ संख्या 97
6.वही पृष्ठ संख्या 102
7.वही पृष्ठ संख्या 107
8.वही पृष्ठ संख्या 13
डॉ० सुनीता मंजू
सहायक प्रोफेसर
हिंदी विभाग
राजा सिंह महाविद्यालय
सीवान
बिहार
सभी चित्र गूगल से साभार
One response to “नीले गुलाब का रहस्य :डॉ सुनीता मंजू”
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बहुत बढ़िया
बधाई

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