प्रेस क्लब ऑफ इंडिया की पहली महिला अध्यक्ष: संगीता बरुआ पिशरोटीएक ऐतिहासिक उपलब्धि, एक स्त्रीवादी संकेत
“प्रतिनिधित्व कोई ‘कृपा’ नहीं, बल्कि अधिकार है”
नई दिल्ली। भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में दर्ज यह क्षण केवल एक संस्थागत बदलाव नहीं है, बल्कि यह उस दीर्घ स्त्री-संघर्ष का सार्वजनिक प्रतिफल है, जो मीडिया संस्थानों के भीतर वर्षों से अदृश्य बना रहा। वरिष्ठ पत्रकार संगीता बरुआ पिशरोटी को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया (PCI) की पहली महिला अध्यक्ष चुना गया है। दशकों पुराने इस प्रतिष्ठित संस्थान में महिला नेतृत्व का यह पहला अवसर न केवल एक व्यक्तिगत उपलब्धि है, बल्कि मीडिया जगत में बदलते सामाजिक‑पेशेवर संतुलन का भी संकेत देता है।
चुनाव में ऐतिहासिक जीत
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के हालिया चुनावों में संगीता बरुआ पिशरोटी के नेतृत्व वाले पैनल ने लगभग सर्वसम्मति के साथ जीत दर्ज की। अध्यक्ष पद पर उनकी जीत ने यह स्पष्ट कर दिया कि पत्रकार समुदाय के एक बड़े हिस्से ने उनके अनुभव, वैचारिक स्पष्टता और संगठनात्मक दृष्टि पर भरोसा जताया है। यह चुनाव केवल पद परिवर्तन नहीं, बल्कि प्रेस क्लब के इतिहास में एक नए अध्याय की शुरुआत माना जा रहा है।
कौन हैं संगीता बरुआ पिशरोटी
संगीता बरुआ पिशरोटी एक जानी‑मानी वरिष्ठ पत्रकार और लेखिका हैं। असम से आने वाली पिशरोटी ने राष्ट्रीय पत्रकारिता में अपनी अलग पहचान बनाई है। वे लंबे समय से नई दिल्ली में सक्रिय हैं और राष्ट्रीय राजनीति, शासन, उत्तर‑पूर्व भारत तथा लोकतांत्रिक संस्थाओं पर उनकी रिपोर्टिंग और लेखन को विशेष महत्व दिया जाता है।
उन्होंने अपने करियर की शुरुआत यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया (UNI) से की और बाद में द हिंदू जैसे प्रतिष्ठित अख़बार में विशेष संवाददाता के रूप में कार्य किया। वर्तमान में वे डिजिटल मीडिया मंच द वायर से जुड़ी रही हैं, जहाँ उन्होंने राष्ट्रीय मामलों पर संपादन और लेखन का कार्य किया।
पत्रकारिता में योगदान और पहचान
संगीता बरुआ पिशरोटी की पत्रकारिता की पहचान सत्ता से सवाल पूछने, हाशिये के क्षेत्रों और समुदायों की आवाज़ सामने लाने तथा संवैधानिक मूल्यों के पक्ष में स्पष्ट रुख रखने के लिए रही है। उत्तर‑पूर्व भारत से जुड़े राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर उनकी गहरी पकड़ मानी जाती है।
वे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों और फ़ेलोशिप्स से सम्मानित की जा चुकी हैं। इसके अलावा वे लेखन के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं। उनकी पुस्तक “Assam: The Accord, The Discord” असम समझौते और उससे जुड़े राजनीतिक‑सामाजिक विरोधाभासों पर एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ मानी जाती है।
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया और महिला नेतृत्व
1958 में स्थापित प्रेस क्लब ऑफ इंडिया लंबे समय से देश के पत्रकारों का एक प्रमुख मंच रहा है। इसके इतिहास में पहली बार किसी महिला का अध्यक्ष बनना, भारतीय मीडिया संस्थानों में लैंगिक प्रतिनिधित्व को लेकर एक महत्वपूर्ण संकेत है।
संगीता बरुआ पिशरोटी की अध्यक्षता ऐसे समय में आई है, जब पत्रकारिता अभूतपूर्व दबावों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़े सवालों और पेशेवर असुरक्षाओं के दौर से गुजर रही है। ऐसे में उनसे अपेक्षा की जा रही है कि वे प्रेस क्लब को एक अधिक सक्रिय, समावेशी और हस्तक्षेपकारी मंच के रूप में आगे बढ़ाएंगी।

आगे की राह
अपने वक्तव्यों में संगीता बरुआ पिशरोटी ने संकेत दिया है कि उनकी प्राथमिकता प्रेस क्लब को केवल एक सामाजिक स्थल तक सीमित न रखकर, पत्रकारों के अधिकारों, सुरक्षा और पेशेवर गरिमा से जुड़े मुद्दों पर सशक्त आवाज़ बनाने की होगी। महिला पत्रकारों, युवा मीडिया कर्मियों और क्षेत्रीय पृष्ठभूमि से आने वाले पत्रकारों के लिए अधिक प्रतिनिधित्व और संवाद के अवसर भी उनकी कार्यसूची में शामिल माने जा रहे हैं।
संगीता बरुआ पिशरोटी का प्रेस क्लब ऑफ इंडिया की पहली महिला अध्यक्ष बनना केवल एक उपलब्धि नहीं, बल्कि उस पितृसत्तात्मक संरचना में दरार है जो दशकों से मीडिया संस्थानों को संचालित करती रही है। यह घटना याद दिलाती है कि प्रतिनिधित्व कोई ‘कृपा’ नहीं, बल्कि अधिकार है। Streekaal के लिए यह क्षण इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पत्रकारिता के भीतर स्त्री नेतृत्व की उस संभावना को रेखांकित करता है, जिसे अक्सर योग्यता के बावजूद हाशिये पर रखा गया। यह पद एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि उस सामूहिक संघर्ष का है जो स्त्रियों ने न्यूज़रूम से लेकर प्रेस क्लबों तक लड़ा है।

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