नई दिल्ली, 18 सितंबर 2025 — साहित्य अकादमी में कार्यरत एक महिला अधिकारी को यौन उत्पीड़न की शिकायत करने के बाद नौकरी से निकाल देने की घटना पर दिल्ली हाईकोर्ट ने सख़्त रुख़ अपनाया है। अदालत ने महिला की बर्ख़ास्तगी को “प्रतिशोधी कदम” करार देते हुए तत्काल उसे उसके पद पर बहाल करने और बकाया वेतन का भुगतान करने का आदेश दिया है।
मामला क्या है
साल 2018 में अकादमी के तत्कालीन सचिव डॉ. के. श्रीनिवास राव पर महिला अधिकारी ने गंभीर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे। शिकायत के मुताबिक सचिव ने नियुक्ति के शुरुआती दिनों से ही अनुचित व्यवहार किया, जिसमें अनचाहे शारीरिक संपर्क और आपत्तिजनक टिप्पणियाँ शामिल थीं।
महिला ने इसकी शिकायत लोकल कंप्लेंट्स कमेटी (LCC) से की। लेकिन अकादमी ने इसे अपने आंतरिक शिकायत निवारण तंत्र यानी इंटरनल कंप्लेंट्स कमेटी (ICC) के दायरे में लाने की कोशिश की और एलसीसी की वैधता को चुनौती दी। इसी बीच फरवरी 2020 में महिला को “कार्य प्रदर्शन में कमी” का हवाला देकर पद से हटा दिया गया। इस मसले पर स्त्रीकाल के संपादक संजीव चंदन ने 2018 में साहित्यकारों से अपील की थी और उसके बाद भी करते रहे हैं।
अदालत की टिप्पणी
28 अगस्त को सुनाए गए फैसले में दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि महिला की बर्ख़ास्तगी सीधा-सीधा प्रतिशोध है और यह कानून की दृष्टि में अवैध है।
न्यायालय ने माना कि सचिव का पद संगठन में “नियोक्ता” (employer) के बराबर है और ऐसे मामलों की सुनवाई का अधिकार एलसीसी को है, न कि अकादमी की आंतरिक समिति को। अदालत ने महिला की सेवा समाप्ति संबंधी आदेश को रद्द करते हुए कहा कि शिकायत दर्ज करने के बाद की गई यह कार्रवाई “न्याय प्रक्रिया को प्रभावित करने” वाली है।
आदेश
महिला को तुरंत उसके पद पर बहाल किया जाए।
सभी बकाया वेतन और सेवा लाभ चार हफ्तों के भीतर दिए जाएँ।
आगे किसी भी तरह की प्रताड़ना या अनुचित दबाव न डाला जाए।
व्यापक असर
अदालत ने यह भी साफ किया कि किसी भी संस्था में शीर्ष पद पर बैठे अधिकारी यदि आरोपी हों तो मामले की जांच स्वतंत्र निकाय द्वारा ही की जानी चाहिए, ताकि निष्पक्षता बनी रहे।
महिला कर्मचारी ने अदालत के फैसले को अपनी “लंबी लड़ाई की जीत” बताया है, जबकि अकादमी की ओर से अभी तक कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं दी गई है।
नहीं सुधरेगा साहित्य जगत :
स्त्रीकाल के संपादक संजीव चंदन ने इस मामले को लेकर 2021 में फेसबुक पोस्ट लिखा था :
जब साहित्य अकादमी में यौन उत्पीड़न की शिकायत करने वाली महिला को ही हटा दिया गया था तब मैंने यहीं सोशल मीडिया में आवाज उठाई थी। तब शायद ही इस आवाज के साथ लेखकों का कोई समूह सामने आया था। न पुरस्कार वापसी वाले और न ही पुरस्कार समर्थन वाले। क्योंकि आगे पुरस्कार सबको चाहिए।
सवाल है कि हिंदी के लेखकों की सामूहिक चेतना कब एक साथ ऐसे मुद्दों पर दवाब बना पाती है? जब कठुआ काण्ड प्रसंग में या मुजफ्फरपुर प्रसंग में हम सब ने बहिष्कार का दवाब बनाया था तब भी लेखकों ने इनकार कर दिया था। कुछ ने बहिस्कार किया भी तब हम दवाब बनाने वालों से नाराज होकर या हमें लानते भेजते हुए। उस वक़्त निजी रूप से मैंने तय किया था कि अब बहिष्कार जैसी कोई सार्वजनिक बात नहीं करूंगा। मुझे कोई निर्णय लेना हो तो अलग बात है। इसीलिए साहित्य अकादमी मामले में मैंने चाहा था कि बहिष्कार नहीं जिम्मेवार पर कार्रवाई का दवाब बनाना चाहिए।
यहाँ साहित्य जगत में सन्स्थानों और शक्तिशालियों से शायद ही कोई पंगा लेता है। मुद्दों पर बोलने वाले और उसपर ऐक्शन लेने वाले कम ही लोग हैं। हाँ किसी थोड़े कमज़ोर व्यक्ति का विरोध करना हो तो अलग बात है या उसका विरोध जिससे उनका व्यक्तिगत प्रभावित न हो। विरोध उनका भी हो सकता है जिन्होंने आपका कोई व्यक्तिगत हित सन्धान न किया हो। मसलन आप किसी पुरस्कार के आकांक्षी रहे हों और सम्बंधित ज्यूरि में रहकर आपके पक्ष में निर्णय देने में असफल रहा हो।
विरोध के अवसर और प्रसंग यहाँ विचित्र होते हैं। हाल में ही स्त्री विमर्श के नाम पर जिस तरह सवर्ण कोटरी बनाने की निर्ल्ज्जता हुई और वहाँ सविता सिँह जैसी स्त्री विमर्श की अथार्टी के रहते अशोक वाजपेयी से अध्य्क्षता करवायी गयी चर्चा उसपर होनी चाहिए थी, विवाद उसपर होना चाहिए था, तो विवाद का विषय बनीं मैत्रेयी पुष्पा। अशोक जी ने वहां गाफिल वक्तव्य दिये, पढ़ी गई कविताओं को सुने बिना स्त्री लेखन को ज्ञान दिया, इसपर कोई बात कहीं सोशल मीडिया में देखने को नहीं मिला। मैत्रेयी विवाद होता रहा और देवपुरुष तटस्थता का स्वांग करते हुए मुस्कराते रहे।
साहित्य अकादमी सम्मान को लेकर जिम्मेवार पर कार्रवाई का माहौल दो साल बाद बनाने की कोशिश पर ही अब शक पैदा होगा कि यह आवाज सापेक्ष है या निरपेक्ष। उन दिनों दलित लेखन पर सीरीज शुरू हुए थे। लोग जाने लगे थे अकादमी। मैं भी दो बार पहुँँचा श्रोता के रूप में। यही साहित्य जगत की निरंतर गति है। ऐसे ही चलना है इसे।
