किस हाल में हैं बोधगया भूमि मुक्ति आन्दोलन की जमीन मालकिनें !

संजीव चंदन 


वह इस माहाद्वीप का पहला भूमि आन्दोलन माना जाता है , जिससे मुक्त हुई जमीनों के  आधिकार महिलाओं ने अपने लिए भी प्राप्त किये . ७वें ८ वें दशक का यह आन्दोलन एक नजीर बना महिला आन्दोलनों के लिए कि कैसे विपरीत परिस्थितियों में भी महिलाओं के आर्थिक अधिकार हासिल किये जा सकते हैं . बोधगया का यह भूमि मुक्ति आन्दोलन यद्यपि महिला आन्दोलन की अगुआई में नहीं जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन से पैदा हुआ ‘युवा संगठन ‘ संघर्ष वाहिनी’ ने की थी . जमीन का मालिकाना हक़ प्राप्त महिलाओं की क्या है वर्तमान स्थिति !  स्त्रीकाल  के लिए एक रपट 
किस हाल में हैं जमीन की मालकिनें 


जब मैं उस इलाके में गया तो एक पूर्व धारणा लेकर गया था कि जमीनें मूल मालिकों के हाथ से निकल गई हैं . संघर्ष वाहिणी के नेता कारू हालांकि सूचित कर देते हैं कि यह आंशिक सच है , २५% तक जमीनें जरूर निकल गई होंगी , लेकिन वे सब किसी न किसी मजबूरी में , बीमारी या शादी –विवाह में . महिलाओं ने अधिकाँश जमीनें बचा रखी हैं, पुरुषों के हाथ की जमीनें शराब आदि की आदतों के कारण भी निकली हैं . कोसा बीजा पंचायत की पार्वती देवी को दो बीघा जमीन मिली थी . खेत के पास ही उन्होंने अपना छोटा सा घर बना रखा है . उनके खेत धान के पौधों से लहलहा रहे हैं. चार बेटों में से एक मकान बनाने का कारीगर है और बाकी खेतों में काम करते हैं . इस इलाके में जमीन की कीमत प्रति बीघा १ करोड़ से भी अधिक हो चुकी है . पार्वती देवी कहती हैं , ‘ जमीन इज्जत होती है , उसे मैं किसी सूरत में नहीं बिकने दूंगी . पार्वती देवी ने इस आन्दोलन में बढ़ –चढ़कर हिस्सा लिया था .

पार्वती देवी



शंकर मठ के खिलाफ था आन्दोलन


बोध गया का शंकर मठ उस इलाके में हजारो एकड़ जमीन का जमींदार हुआ करता था. इस मठ को १५० से एकड़ जमीन दी थी शेरशाह सूरी के वंशज ने , जिसके बाद इसका मालिकाना फैलाव ३० हजार एकड़ से अधिक खेती और गैर खेती की जमीनों तक होता गया था. इलाके के दलित , खासकर भुइयां ( मुसहर ) जाति के दलित मठ की जमीनों में बंधुआ मजदूर की तरह काम करते थे. शेरघाटी , बाराचट्टी , बोधगया और मोहनपुर प्रखंड में मठ ने अपनी ‘ कचहरियाँ’ बना रखी थी , जो इन मजदूरों पर नियंत्रण का काम करती थी . इसी भूमिहीन मजदूर जाति के स्त्री पुरुष इस आन्दोलन में हरावल की तरह शामिल हुए. ७वें दशक के प्रारम्भ में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ( सी पी आई ) ने मठ की जमीनों की हदबंदी और भूमिहीनों में उसके वितरण के सवाल पर आन्दोलन शुरू किए. इस आन्दोलन में सी पी आई के एक नेता ‘ चुरामन माली’ की ह्त्या हो गई . बाद में भूमि मुक्ति के इस  आन्दोलन को दो  चरणों में जयप्रकाश नारायण के अनुयाइयों ने नेतृत्व दिया . पहले चरण में जे. जगन्नाथन और उनकी पत्नी कृष्णम्मा ने लोगों को संगठित किया , लेकिन अंतिम निर्णायक लड़ाई लड़ी गई १९७८ के बाद संघर्ष वाहिनी के नेतृत्व में. सालों चली इस लड़ाई में मठ की कचहरियाँ तोड़ दी गई . ८ अगस्त १९७९ को आन्दोलनकारियों पर पुलिस ने गोली चलाई , जिसमें पाचू मांझी और राम देव  मांझी की हत्या हो गई . १९८१ में लगभग १,५०० एकड़ जमीन बांटी गई ,  बाद में और भी किस्तों में बंटी, और अंततः १९८७ में तत्कालीन मुख्यमंत्री बिन्देश्वरी दुबे के समय में ३५,००० बीघा  जमीन भूमिहीनों में बाँट दी गई.

मांजर देवी , आन्दोलन की एक स्थानीय नेता

आसान नहीं थी डगर महिलाओं के लिए


इस आन्दोलन में बड़ी संख्या में महिलाओं की भागीदारी थी . आन्दोलन के एक नेता उपेन्द्र सिंह कहते हैं , ‘ हमलोग महिलाओं को आगे रखते थे . यह रणनीति थी . सरकार और मठ ताकि आन्दोलनकारियों पर हमले का आरोप लगा कर उनका दमन न कर सकें, लेकिन इससे ज्यादा महत्वपूर्ण था कि महिलाओं ने इस आंदोलन को नेतृत्व दिया था .’ जब जमीन के पट्टे लिखे जाने लगे तब महिलाओं ने सवाल खड़े किये कि यह जमीन सिर्फ पुरुष भूमिहीनों को क्यों दिए जाये ? इस सवाल के बाद उन्हें समाज के पुरुष वर्चस्व से दो –चार होना पडा . उन्हें जवाब मिला कि जमीन परिवार के मुखिया को ही दिए जायेंगे , जो कि पुरुष होता है . दवाब डाले जाने पर अधिकारियों ने धमकी दी कि जमीन किसी को नहीं दी जायेगी. १९८२ में शेरघाटी के प्राशास्कों का महिलाओं ने घेराव किया और अपनी बात रखी.

पार्वती देवी का घर



यद्यपि संघर्षवाहिनी के पुरुष आन्दोलनकारियों ने महिलाओं के हक़ में राय दी लेकिन स्थानीय विरोध प्रबल  था. तर्क दिया गया कि महिलायें खेत नहीं जोत सकती हैं. महिलाओं ने जवाब दिया कि रोपने –काटने –ओसाने का काम महिलायें करती हैं . एक विचित्र प्रसंग १९८५ में आया जब बैंक  एक स्कीम के तहत बैल खरीदने के लिए ऋण दे रहे थे . समाज के पुरुषों ने कहा कि महिलाओं के नाम से जमीन के पट्टे होने से दिक्कत आती है कि वे बाहर नहीं जा सकती हैं. महिलाओं ने व्यंग्य किया कि फिर हम खेतों में काम करने कैसे जाती थीं .

सर्वोदयी गाँव के बच्चे




मांजर देवी आन्दोलन पर एक सवाल !


इस आन्दोलन की जुझारू नेता थीं पीपरघट्टी की मांजर देवी . भुइंया जाति की यह जुझारू महिला उनदिनों सुर्ख़ियों में रहती थीं –देश –विदेश के मीडिया माध्यमों में . इन्होने महिलाओं को जमीन का हक़ दिलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी . आज चलने से लाचार मांजर देवी की हालत बदहाल है . उन्हें आन्दोलन से मुक्त हुई जमीन नहीं मिली थी क्योंकि वे इस आन्दोलन में प्रमुख भूमिका में थी इसलिए जमीन पर दूसरों का दावा पहले होने दिया . उन्हें दो बीघा जमीन मिली भूदान में . नेता होने के कारण आस पास के दबंगों ने इन्हें निशाना बनाया . इनके पूरे परिवार पर डकैती का केस दर्ज करवा दिया गया . वे कहती हैं , ‘ ऐसा आन्दोलन के कमजोर होने पर हुआ . मेरी अधिकाँश जमीनें केस मुकदमे में निकल गई. धनवाद से अंजलि जी मिलती हैं और कोइ  नहीं . तब भी मुझे उस आन्दोलन में होने का गर्व है.’ संघर्ष वाहिणी की तत्कालीन नेता और धनवाद महिला मंच की अंजलि कहती हैं , ‘ मैं ८ अगस्त को गई थी . मांजर जी से भी मिली . हम चाहते हैं कि वहाँ एक केंद्र खोला जाय ‘ जयप्रभा’ ( जयप्रकाश और प्रभावती के नाम पर )  नाम से ताकि लोग जनोन्मुखी कामों से जुड़ें .

भुइंया जाति की नई पीढी

जहां २ बीघा  से ५ बीघा  हो गयी जमीन 


बोधगया इलाके में एक गाँव ऐसा भी है , जहां के पूर्व भूमिहीनों ने प्राप्त दो बीघा जमीन को ५ बीघा बना लिया . मूलतः खेत मजदूर रहे इस जाति की मेहनत का फल है सर्वोदयपूरी कोशला नाम का यह गाँव . यद्यपि इन्हें जमीने भूदान में मिली थी , आन्दोलन में नहीं, लेकिन मेहनत से आज अधिकाँश लोगों ने अपनी जमीनें बढ़ा ली . देश भर  में सभी भूमिहीनों को ५ एकड़ जमीन के लिए  मुहीम छेड़ने की घोषणा करने वाले आर पी आई के नेता रामदास आठवले कहते हैं , जमीन एक बड़ी ताकत होती है . आज भी यह उत्पादन का सबसे बड़ा क्षेत्र है. महाराष्ट्र में और बाद में बोधगया में भूमिहीनों को मिली जमीनों ने असर दिखाना शुरू कर दिया है .’ हालांकि एक फर्क है बोधगया और महाराष्ट्र में . बोधगया के इलाके में इन दलितों ने शिक्षा पर जोर नहीं दिया , इलाके से अफसर तो दूर कोइ ढंग की सरकारी नौकरी में नहीं है , जबकि महाराष्ट्र के दलितों ने शिक्षा को सबसे पहले प्राथमिकता दी .

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

ISSN 2394-093X
418FansLike
783FollowersFollow
73,600SubscribersSubscribe

Latest Articles