द्रौपदी ! भारतीय सेना बलात्कारी नहीं,राष्ट्रवादी है (?!)

21  सितंबर को हरियाणा केन्द्रीय विश्वविद्यालय के अंग्रेज़ी विभाग ने महाश्वेता देवी को श्रद्धांजलि देने के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया. इए मौके पर ‘उनके उपन्यास ‘हजार चौरासीवें की मां’ पर एक फिल्म दिखाई गई, और  उनकी मशहूर कहानी ‘द्रौपदी’ पर आधारित एक नाटक का मंचन किया गया. दर्शकों में छात्रों और शिक्षकों के साथ अधिकारी भी थे. लोगों ने  नाटक को काफी सराहा.
महाश्वेता देवी की कहानी द्रौपदी पर आधारित स्केच

लेकिन यह सराहना ज्यादा देर तक बनी नहीं रह सकी. वजह थी नाटक की पटकथा पर राष्ट्रवादी सरकार (!)की राष्ट्रवादी पार्टी भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रवादी विद्यार्थी शाखा (!) ‘ विद्यार्थी परिषद’ की आपत्तियां. परिषद को आपात्ति है  कि नाटक में भारतीय सेना का अपमान किया गया है , इसलिए आयोजकों पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा दर्ज हो.

सेना बलात्कारी नहीं है


कहानी की नायिका द्रौपदी पर सेना के लोग बलात्कार करते हैं. कहानी बलात्कार पीडिता के संघर्ष की है. वह सामूहिक बलात्कार का शिकार होकर अपने शरीर पर हिंसा के जख्म लिए हुए सेनानायक को ललकारती है. सेना नायक अपने निहत्थे ‘टार्गेट’ के आगे पराजित सा खडा है. राष्ट्रवादी विरोधियों का आरोप है कि राष्ट्र के रणबांकुरों की इतनी गंदी छवि क्यों दिखाई भारत की उस लेखिका ने, जिसकी कलम की ताकत  इस देश ही नहीं दुनिया के लोग मानते हैं. राष्टवादी आत्माओं को भारत के पूर्वोत्तर इलाके से लेकर देश भर में सेना के लोगों पर लगे बलात्कार के आरोप षड़यंत्र दिखते हैं , मणिपुर में बलात्कार के खिलाफ महिलाओं का नग्न प्रदर्शन झूठ
और बेवजह.

नाटक के सवाल 

‘द्रौपदी’ एक आदिवासी औरत की कहानी है जो सुरक्षा बल के हमले की शिकार होती है. होश में आने पर  उसे यह अहसास होता है कि उसके साथ बलात्कार हुआ है. वह अपने नागे शरीर को ढंकने से इनकार कर देती है और उस ज़ख़्मी नंगेपन के साथ सुरक्षा बल के अधिकारी को चुनौती देती है. नाट्य रूपांतरण के प्रसंग में  एक उपसंहार जोड़ा गया, जिसमें आज के भारत में आदिवासियों और अन्य समुदायों पर  आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट (आफ्सपा) जैसे क़ानून की आड़ में हो रहे ज़ुल्म की बात की गई. न्यायमूर्ति वर्मा समिति और उच्चतम न्यायालय के हवाले से बताया गया कि किस प्रकार भारतीय सुरक्षा बल के सदस्य यौन हिंसा के अपराध में शामिल रहे हैं. दर्शकों से इस परिस्थिति में अपनी भूमिका तय करने को कहा गया.नाटक में वंदना ने द्रौपदी, कारलोस लियोन फर्नेंडिस ने सूरजा साहू, दीपक ने अरिजीत, अश्विन ने सेनानायक, अजय कुमार ने डुलना एवं चारू ने टूडू की पत्नी के चरित्रों को जीवंत किया। नाटक का निर्देशन डॉ.मनोज कुमार एवं डॉ. स्नेहसता ने किया।
इस नाटक का एक हिस्सा रिकार्ड कर सोशल मीडिया में वायरल कर दिया गया, जिसके बाद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ( एबीवीपी) के लोग विश्वविद्यालय से बाहर प्रदर्शन कर रहे हैं, आयोजकों पर ऍफ़ आई आर करने और उनकी गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं.

खेले गये नाटक का वीडियो लिंक 



द्रौपदी को कपड़े पहनाना चाहते हैं राष्ट्रवादी 

नाटक की नायिका द्रौपदी का कथन है, ‘तुम मेरे कपड़े उतार सकते हो, लेकिन पहनने को विवश  नहीं कर सकते.’ यह कथन पूर्वोत्तर भारत सहित पूरे देश में स्त्रियों पर बलात्कार का प्रतिरोध है. मणिपुर में सेना के लोगों द्वारा बलात्कार के बाद मणिपुर की महिलाओं के  नग्न प्रदर्शन से भी इस देश के राष्ट्रवादियों और राष्ट्रवादी सेना की संवेदना नहीं जागी और आये दिन इस देश की आदिवासी-दलित महिलाओं पर बलात्कार की खबरें आती रहती हैं. छतीसगढ़ में सोनी सोरी के गुप्तांगों में पत्थर डालने से लेकर क्रूरता और हिंसा की वीभत्स घटनाएं इस देश के दैनंदिन में शामिल अभ्यस्तता सरीखे हो गई हैं.

लेकिन इस क्रूरता, नग्नता पर शर्मिन्दा होने की जगह राष्ट्रवादियों की सेनायें, जो अलग -अलग संगठनों के रूप में सक्रिय हैं, ऐसी घटनाओं, सेना सहित मर्दों के वहशीपन और ‘द्रौपदियों’ के शरीर पर अत्याचार के चिह्न को कपड़ों से ढंकना चाहती हैं- क्योंकि ये घटनाएं उनके राष्ट्रवाद पर धब्बा हैं. महाश्वेता देवी की कहानी और उस पर आधारित नाटक की नायिका इसी कपड़े को पहनने से इंकार करती है – यही सशक्त कथन है. इस कहानी को दलित स्त्रीवाद की कहानी भी बताया जाता रहा है.

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