वीरांगना होलिका मूल निवासी थी , क्यों मनायें हम उनकी ह्त्या का जश्न

(  भारत में होली जैसे त्योहारों का जन्म  कृषि समाज के आम जन के उल्लास के  रूप में  हुआ है . ऋतुओं के चक्र के साथ कई त्योहार अस्तित्व में आये . होली रबी फसल के तैयार होने के पूर्व और नये साल के उल्लास स्वरुप निम्नवर्गीय समुदायों , कृषि समाज के आमजनों का पर्व रहा होगा , लेकिन धीरे -धीरे इन त्योहारों , पर्वों , उल्लासों का ब्राह्मणीकरण होता गया. इनपर  वैष्णव/ ब्राह्मण कहानियां  आरोपित कर दी गई. ये सारी कहानियां यहाँ के आमजन के विरुद्ध उनपर आरोपित कर दी गई. सभ्यताओं -संस्कृतियों के नायकों पर आर्यों की जीत और नायकों की ह्त्या का जश्न धार्मिक कथाओं के साथ वैध बना दिये गये. आज देश भर में  दलित -बहुजन समुदाय अपनी संस्कृति की पुनर्स्थापना कर रहा है, इस क्रम में आयोजन कर रहा है .  होलिका शहादत दिवस का आयोजन उन आयोजनों में से एक है , जो देश भर में गैर –ब्राह्मण जातियां और जनजाति समूह ब्राह्मणवादी संस्कृति का विरोध करते हुए अपनी संस्कृति की खोज और स्थापना के लिए मना रहे हैं  
सम्पादक ) 




‘क्यों मनायें हम अपने ही लोगों की ह्त्या का जश्न. होलिका मेरी ही तरह बहुजन थी, मूल निवासी थी. वह असुर कन्या थी , जिसे वैष्णव आर्यों ने मारा, ज़िंदा जला दिया, फिर हम उसे जलाये जाने का जश्न हर वर्ष क्यों मनायें’, यह कहना है औरंगाबाद ( बिहार ) की शिक्षिका बेबी सिन्हा का. बेबी सिन्हा वीरांगना होलिका शाहदत दिवस में शामिल होने आये थीं. वे स्त्रियों को संगठित कर होलिका दहन के खिलाफ मुहीम चलाना चाहती हैं.
20 मार्च को सम्राट अशोक विजय चौक स्थित महाराजा सयाजीराव गायकवाड सभागार में राष्ट्रीय मूल निवासी बुद्धिजीवी संघ की ओर से होलिका शाहदत दिवस मनाया गया. होलिका शहादत दिवस का आयोजन उन आयोजनों में से एक है , जो देश भर में गैर –ब्राह्मण जातियां और जनजाति समूह ब्राह्मणवादी संस्कृति का विरोध करते हुए अपनी संस्कृति की खोज और स्थापना के लिए मना रही हैं. हाल में बजट सत्र में संसद के दोनो सदनों में एन डी ए की मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति इरानी ने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्याल में ‘महिषासुर शहादत दिवस’ मनाये जाने पर काफी हंगामेदार हमला किया था. ईरानी या तो खुद होमवर्क करके नहीं गई थीं या देश भर में बहुजन परम्परा की पुनर्स्थापना के प्रयासों को जानबूझकर निशाना बना रही थीं. देशभर में ब्राह्मणवादी मिथकों के पुनर्पाठ के साथ त्योहारों के नये स्वरुप बन रहे हैं , औरंगाबाद जिले में पिछले पांच साल से मनाया जाने वाला ‘ वीरांगना होलिका शाहदत दिवस’ उसी कड़ी का हिस्सा है .

20 मार्च को ‘वीरांगना होलिका शहादत दिवस’ के अवसर पर ‘मूल निवासी संस्कृति : पर्व एवं पूर्वज’ विषय पर एक परिचर्चा आयोजित की गई. वक्ताओं ने कहा कि ‘ मूलनिवासियों की संस्कृति, उनके पर्वों –त्योहारों का ब्राह्मणीकरण किया गया है.’ औरंगाबाद के जिला मुख्यालय में मनाये जाने के पहले ‘ वीरांगना होलिका शहादत दिवस’  का आयोजन 13 मार्च को होलिका नगर महिषासुर चौक ( चिल्ह्की मोड़ ) अम्बा में किया गया. यहाँ भी आयोजन में राष्ट्रीय मूल निवासी बुद्धिजीवी संघ के अलावा आम्बेडकर चेतना परिषद् की सहभागिता थी. 13 मार्च के आयोजन में भी ‘मूल निवासी संस्कृति : पर्व एवं पूर्वज’ विषय पर परिचर्चा आयोजित की गई.
बहुजन विचारक विजय कुमार त्रिशरण ने इस विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा कि ‘ मूल निवासी प्रकृति की पूजा करते थे , उनका मौसम आधारित , फसल आधारित पर्व था. ब्राह्मणवादियों ने होलिका की ह्त्या करके उसे हमारे पर्व पर प्रतिस्थापित कर दिया. और अपनी खुशी भी मूलनिवासियों पर प्रतिष्स्थापित कर दी. इसलिए ‘होलिका दहन’ भी मूलनिवासियों पर थोपा गया पर्व है .’

ब्राह्मणवादी मिथकों के पुनर्पाठ और लोकमिथों के समन्वय से आयोजकों ने ‘ होलिका दहन’ का अपना आख्यान भी पेश किया है. जिसके अनुसार ‘ राजा बली के पिता का नाम विरोचन था, विरोचन के पिता का नाम प्रहलाद था, प्रहलाद के पिता का नाम हिरण्यकश्यप था. हिरण्यकश्यप की एक बहन थी, जिसका नाम होलिका थी . वीर और युवा होलिका आर्यों के खिलाफ हिरण्यकश्यप के सामान ही लडती थी. वह अविवाहित थी . हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रहलाद को आर्यों ने अपने साथ मिला लिया था, वह आर्यों का भक्त ( दास) बन गया था. राजा हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को बस्ती से बाहर रहने का आदेश दे दिया था. पुत्रमोह के कारण प्रहलाद की माँ अपनी ननद होलिका से उसके लिए भोजन भिजवा दिया करती थी, एक दिन होलिका शाम के समय जब उसे भोजन देने गई तो आर्यों ने उसके साथ बदसलूकी की और उसे जलाकर मार डाला. सुबह जब होलिका घर न पहुँची तो राजा को बताया गया . राजा ने पता लगवाया तो मालूम हुआ कि शाम को होलिका आर्यों की ओर प्रहलाद के लिए खाना लेकर गई थी, लेकिन वापस नहीं आई. तब राजा ने उस क्षेत्र के आर्यों को पकडवाकर उनके मुंह पर कालिख पुतवाकर माथे पर कटार या तलवार से चिह्न बनवा दिया और घोषित करवा दिया कि ये कायर लोग हैं . ‘ वीर’ शब्द का अर्थ है , बहादुर या बलवान. वीर के आगे अ लगाने पर ‘ अवीर’ हो जाता है , जिसका अर्थ होता है , कायर. होली के दिन माथे पर जो लोग लाल –हरा पीला रंग लगाते हैं , उसे ‘अवीर’ कहते हैं , यह कायरता का चिह्न है .’

परिचर्चा में भागीदार आनंद बैठा ने कहा कि ‘ बहुजन समुदाय की जातियां और समुदाय अब अपना हित समझ रहे हैं, अपने खिलाफ आर्य –ब्राह्मण षड़यंत्र से वे वाकीफ हो रहे हैं.’ इसी आयोजन में यादव, कुशवाहा , कुर्मी , रविदास, चंद्रवंशी बैठा आदि जातियों के साथ –साथ दलित –ओ बी सी जातियों के अनेक लोगों ने शिरकत की . यह इस बात का प्रमाण है कि हमलोग अपनी संस्कृति की पुनर्रचना कर रहे हैं.’
‘वीरांगना होलिका’ की शाहदत मनाने वाले लोगों ने न सिर्फ होलिका की पेंटिंग के जरिये एक वास्तविक प्रतीक रचा है , बल्कि अपने पैम्पलेट , बैनरों और संबोधनों में वे सम्राट महिषासुर, सम्राट रावण , महात्मा बुद्ध, चन्द्रगुप्त मौर्य , सम्राट अशोक, महात्मा कबीर, संत रविदास, बिरसा मुंडा,  महात्मा फुले, सावित्रीबाई फुले, डा. आम्बेडकर, पेरियार, संत गाडगे बाबा, जगदेव प्रसाद, कांशीराम सरीखे बहुजन नायकों के साथ अपनी बहुजन परम्परा रचते हैं.

मिथकों , लोककथाओं , इतिहास  के पुनर्पाठ के साथ इन कार्यक्रमों के आयोजक का मुख्य सरोकार वर्तमान के खतरों को समझना और व्याख्यायित करना भी है. परिचर्चा में डा. विजय गोप ने कहा कि पूरे औरंगाबाद के मुहल्लों का ब्राह्मणीकरण किया जा रहा है, उनके नाम बदले जा रहे हैं. जैसे पीपरडीह को गांधीनगर, दानीबिगहा को सत्येन्द्र नगर बना दिया गया है , कहीं चित्तौड़गढ़ तो कहीं श्रीकृष्ण नगर आदि नाम रखे जा रहे हैं , जबकि वहां रहने वाले लोग ज्यादातर मूलनिवासी हैं.

आयोजक एवं 20 मार्च के कार्यक्रम के अध्यक्ष पेरियार सरयू मेहता के अनुसार ‘ हमेशा की तरह ब्राह्मणीकरण आज भी जारी है. बौद्ध धर्म के प्रचार –प्रसार के लिए मठों की स्थापना की गई थी, जिन्हें विहार / मठ कहा जाता था. आज बिहार के मठों में ढेली बाबा , तेली बाबा बैठाकर पूजा अर्चना की जा रही है. इसतरह ब्राह्मणीकरण हो रहा है. औरंगाबाद के 60 किलोमीटर के दायरे पर गौर करें तो दिखता है कि ‘ उमगा , देव , पतलगंगा, किशुनपुर, परता , डेमा, सिकरिया , सरैया , धुन्धुआ आदि मठों के हजारो एकड़ जमीन का लाभ ब्राह्मण उठा रहे हैं. इन मठों पर उनका कब्जा है.’

ब्राह्मणीकरण के इसी खतरे को भांपते हुए इस इलाके के बहुजन चेतना से सम्पन्न लोगों ने अपने नामकरण भी किये है. इसी प्रयास के तहत महिषासुर चौक, होलिकानगर, सयाजीराव गायकवाड सभागार जैसे नामकरण भी किये जाने के प्रयास हुए हैं.  सरयू मेहता बताते हैं कि ‘ यहाँ औरंगाबाद में हमलोग ‘कृष्ण शहादत दिवस’ भी मनाते हैं. वेदों में कृष्ण को असुर बताया गया है उन्हें आर्यों के राजा इंद्र ने धोखे से मारा. आर्यों के राजा इंद्र से कृष्ण का युद्ध भी हुआ था. युद्ध में हारने पर कृष्ण ने यमुना नदी का बाँध कटवा दिया था, जिससे आई बाढ़ से बचने के लिए कृष्ण को अपनी बस्ती के लोगों के साथ गोवर्धन पर्वत पर जाना पड़ गया था.’ कृष्ण के पोते अनिरुद्ध का विवाह भी वाणासुर की पुत्री उषा से हुआ था, इससे भी सिद्ध होता है कि कृष्ण असुर थे.’
शिक्षिका उषा यादव कहती हैं, ‘ सारे पर्वों में बहुजन –मूल निवासी नायकों की ह्त्या का जश्न जोड़ दिया गया है. यह हमारे उत्साह , पर्व पर ही ब्राह्मण –वैष्णव प्रहार के कारण हुआ है. हम सब अब चेतना सम्पन्न हो रहे हैं. वीरांगना होलिका का दहन न हम करते हैं और न किये जाने के पक्ष में हैं.’

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