रक्त शुद्धता, स्त्री दासता और लव जेहाद

सीमा आज़ाद

सीमा आज़ाद  सामाजिक कार्यकर्ता एवं साहित्यकार हैं. संपर्क :seemaaazad@gmail.com

धर्म, जाति, देश, राज्य, कबीलों के अस्तित्व में आने से पहले से धरती पर स्त्री और पुरूष का अस्तित्व था, फलतः इनके बीच के प्रेम का भी। ‘प्रेम’-यह धरती पर स्त्री और पुरूष के अस्तित्व में आने के साथ ही आया है और इनके साथ ही जायेगा। ऐसा हो ही नही सकता कि धरती पर स्त्री और पुरूष तो रहें  पर प्रेम न रहे। मनुष्य को मिली तमाम प्राकृतिक सम्पदा की तरह प्रेम भी एक प्राकृतिक सम्पदा है यह जाति धर्म और देश से परे है। इसी कारण धरती पर जैसे ही सत्ता के रूप- धर्म और राज्य की उत्पत्ति हुई, सभी ने स्त्री और पुरूष के इसी भाव को नियन्त्रित करने की कोशिश की। प्रेम, मोहब्बत, लव, एक मायने वाले ये सारे शब्द मीठे और नाजुक से लगते हैं, पर आदिम समाज से लेकर अब तक की तमाम सत्तायें इससे डरती रहीं हैं, उनके लिए ये शब्द बारूद की तरह हैं ,जो फट जायें तो अब तक स्थापित सत्ताओं की नींव हिला सकती है। आइये देखते हैं कैसेआदिम कबीला समाज जो मातृप्रधान था, को पलट पितृसत्ता अस्तित्व में आया।यानि मानव श्रम से संग्रहित सम्पदा जिसका रखरखाव और वितरण कबीले की महिलाओं के हाथ में था, के ऊपर पुरूषों का कब्जा। फिर इस सम्पत्ति पर पुरूषों के सामूहिक कब्जे का खात्मा और व्यक्तिगत स्वामित्व में बदलना। इतिहास बताता है कि मातृप्रधान समाज से पितृसत्ता में बदलने की यह प्रक्रिया सदियों तक चलती रही, जिसमें स्त्रियों को सम्पत्ति के स्वामित्व से बेदखल कर पुरूषों ने उन्हें अपने वंशज पैदा करने वाली दासी में तब्दील कर लिया ताकि अपने पास एकत्रित सम्पत्ति को अपनी ही सन्तान को सौंपा जा सके। इसे मुकम्मिल करने के लिए ऐसे विवाह संस्कार की नींव डाली गयी जिसमें स्त्रियों के लिए तो प्रेम की एकनिष्ठता अनिवार्य थी, लेकिन पुरूषों के लिए नहीं, जिसमें स्त्रियों को सारे अधिकारों से वंचित कर दिया गया। यह प्रेम पर पहरा लगाने की शुरूआत थी। वास्तव में यह स्त्रियों पर पहरा या स्त्रियों के प्रेम पर पहरे की शुरूआत थी। यह पहरा प्रेम की एकनिष्ठता बनाये रखने से भी ज्यादा ‘वंश की शुद्धता’ के लिए जरूरी थी।

स्त्रियों को दासी बनाने के बाद यह सिलसिला आगे बढ़ा, जो पुरूषों को दास बनाने तक गया। यानि मानव श्रम से अर्जित और इकट्ठी होती जाती अतिरिक्त सम्पत्ति पर श्रम के लिए मानव को गुलाम बनाने की शुरूआत, जिसमें स्त्री पुरूष दोनों शामिल थे। इस दास प्रथा ने ही भारत में वर्ण व्यवस्था का रूप लिया, जिसके तहत ब्राहमण और क्षत्रिय धरती की सम्पदा के मालिक बन बैठे और शेष उनकी सेवा में लगे दास। धर्म के संस्थागत रूप लेने और फिर राज्य की उत्पत्ति ने इस अव्यवस्था को व्यवस्था में बदलने के लिए पूरी जान लगा दी, लेकिन नाजुक सा लगने वाला कमबख्त इश्क-मोहब्बत-प्रेम-लव ही था, जो इस वर्ण और जाति की व्यवस्था में सेंध मारता रहा। इस कारण इस पर पहरा और मजबूत किया गया। यहां हम प्रेम और स्त्री को समानार्थी शब्दों के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं। प्रेम पर पहरा यानि स्त्री पर पहरा और स्त्री पर पहरा यानि प्रेम पर पहरा। विवाह संस्था के माध्यम से यह व्यवस्था की गयी कि एक वर्ण और जाति की स्त्रियां और पुरूष आपस में ही शादी करेंगे, दूसरे वर्ण या जाति में नहीं। दूसरी जाति में शादी हो भी जाती थी, किन्तु दूसरे वर्ण में शादी को महा अनर्थ समझा जाता था। वास्तव में यह व्यवस्था दास और मालिक वर्ग के बीच के फर्क को बनाये रखने के लिए की गयी  थी। ताकि मालिक वर्ग की औरतें मालिक वर्ग के ही बच्चे पैदा करें दास वर्ग के नहीं नहीं। ‘वंश शुद्धता’ अब ‘वर्ण शुद्धता’ के साथ मिल गयी और स्त्रियां ‘शुद्ध रक्त’ वाले वंशज पैदा करने वाली दासी बन गयी लेकिन मालिक वर्ग के पुरूषों की यौन स्वच्छंदता बरकरार रही। वास्तव में रक्त की ‘शुद्धता’ भी अपने आप में छलावा है, इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। विज्ञान ‘रक्त समूह’ यानि ब्लड ग्रुप की बात करता है, जो जरूरी नहीं कि भाई से भाई का मिले बल्कि संभव है कि एक हिन्दू मुस्लिम और दलित का रक्त समूह एक ही हो। इसमें रक्त शुद्धता जैसी कोई चीज नहीं।

खैर…… मुगलों के आने के बाद भारत के वर्णों के बीच कथित रक्त शुद्धता का कानून तो बना रहा, परन्तु एक जैसी सामाजिक आर्थिक स्थिति वाले हिन्दू और मुसलमानों के बीच प्रेम कुलांचे मारने लगा। प्रेम ने धर्म की शुद्धता को तो नहीं माना, पर वर्ग यानि वर्ण की शुद्धता को बनाये रखा। यह उस समय की राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक व्यवस्था के अनुकूल था । जैसे-जैसे यह स्थितियां बदलीं और धर्म की राजनीति सत्ता के लिए जरूरी होती गयी, प्रेम को वर्ण, जाति के साथ धर्म के दायरे में भी बांध दिया गया। स्त्रियों पर पहरा फिर कड़ा हो गया। आज के ‘लव जेहाद की राजनीति इसी पृष्ठभूमि से निकल कर आयी है। यह आज की सत्ता की जरूरत है। वास्तव में आज की सत्ता की जरूरत प्रेम पर पहरा लगाना उतना नहीं, जितना भारत की शोषित आबादी को एकजुट होने से रोकना है। इस समय वह लोगों के दिमाग में बैठे पुरातन मूल्यों को उकसाकर एक तीर से दो निशाना साध रही है। पहला- वह धर्म के आधार पर लोगों को बांट रही है और दूसरा- वह स्त्री और पुरूष के बीच की दूरी को और बढ़ा रही है। आज के सत्ता की राजनीति अल्पसंख्यक धर्म पर बहुसंख्यक धर्म को मढ़ने की है। वह अल्पसंख्यकों के दमन के लिए बहुसंख्यकों को उकसा रही है। संविधान में लिखे वाक्य ‘‘भारत एक धर्मनिरपेक्ष, पंथनिरपेक्ष राष्ट्र है’’ को झुठला रही है। ‘लव जेहाद’ की राजनीति वास्तव में अल्पसंख्यकों पर दमन की राजनीति है, यह साम्प्रदायिक राजनीति है। इसे दिये गये नाम से ही यह स्पष्ट है जिसमें भारत के दो अल्पसंख्यक समूहों से जुड़ी भाषा के शब्दों का चुनाव किया गया है- ‘लव’ (ईसाई) और ‘जेहाद’ (मुसलमान)। यह राजनीति हिटलर की तरह एक धर्म को श्रेष्ठ बताने वाली राजनीति है और यह आज के शासक वर्ग की सबसे बड़ी जरूरत है। हिन्दुत्ववादी संगठनों का यह तांडव लोगों को सामंती पितृसत्ता के युग में वापस ले जाने की साजिश है, जिससे वे महिलाओं की गुलामी को बरकरार रख सकें। याद करें रक्त शुद्धता की बात करते हुए महिलाओं पर तमाम बन्धन लादे गये और उन्हें दासी बनाया गया। आज वे फिर से इसी की बात कर रहे हैं। महिलाओं के प्रति उनका नजरिया क्या है यह इससे भी स्पष्ट है कि ‘लव जेहाद’ की इस राजनीति में यह अन्तर्निहित है कि हिन्दू महिलाओं के पास दिमाग नाम की चीज नहीं है और इसी लिए वे मुसलमान युवकों के बहकावे में आ रही हैं और उनकी रक्षा करना हिन्दू पुरूषों का परम कर्तव्य है, आज के समय का सबसे बड़ा कर्तव्य।

पिछली एक शताब्दी से दुनिया भर में शोषण के खिलाफ होने वाले विभिन्न आन्दोलनों ने महिलाओं के एक बड़े तबके को अपने अधिकारों के लिए जागरूक किया है। वे अपनी शारीरिक आर्थिक और मानसिक हर तरह की दासता को एक-एक कर तोड़ती जा रही है। पुरूषों का प्रगतिशील तबका जहां औरतों की इस नयी स्थिति का स्वागत कर रहा है और उससे तालमेल बिठाने में लगा है, वहीं उसका पिछड़ा तबका उनकी राह में रोड़े खड़े कर रहा है। साम्प्रदायिक राजनीति करने वालों ने इसी पिछड़े तबके को अपने साथ मिला लिया है और आगे बढ़ रही महिलाओं के खिलाफ खड़ा कर दिया है और यह दोनों तबके हर धर्म में हैं। पिछड़ी चेतना वाला यह समूह ही आज ठग्गू सत्ता से लड़ने की बजाय अपने ही सहोदर भाइयों (क्योंकि वे उनसे अलग धर्म में पैदा हुए हैं) और स्त्रियों से लड़ रहे हैं। ये लोग आज की साम्प्रदायिक, सामंती और साम्राज्यवादी राजनीति का शिकार बन रहे हैं। इस राजनीति के वाहक आपस में प्रेम करते हैं लेकिन अपने खिलाफ कभी भी खड़ी हो जाने वाली जनता को बांटने की राजनीति करते हैं। यकीन न हो तो भारत में इस राजनीति का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करने वाली पार्टी, भाजपा के अन्दर जरा झांक कर देख लीजिये कि उनके नेता और उनके परिजन खुद कितने अन्र्तजातीय और अन्र्तधर्मीय विवाह बन्धन में बंधे हैं सिकन्दर बख्त, मुख्तार अब्बास नकवी, शहनवाज आलम आदि ने हिन्दू लड़कियों से विवाह किया, और ये लड़किया किसी भाजपा नेता की लड़कियां रही हैं, यानि उन पिताओं को भी अपनी लड़की किसी मुस्लिम के हाथ में देने में कोई परेशानी नहीं थी। भाजपा के फायरब्रांड नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने पारसी लड़की से शादी की थी। इसके अलावा कई अन्य भाजपा नेताओं ने अपने बेटे-बेटियों का अन्तरधर्मीय विवाह खुशी-खुशी किया है। लेकिन जनता के ऐसे विवाह को वे ‘जेहाद’ बताते हैं।

अगर इस ‘जेहाद’ से धर्म और जाति की दीवारें टूटती हैं तो यह ‘जेहाद’ किया ही जाना चाहिए, जैसा कि खुद भाजपा के नेताओं और उनके परिजनों ने किया है, हम उनके इस कदम का स्वागत करते हैं। जनाब, यदि आपको अपने धर्म और जाति से बाहर प्रेम और विवाह का अधिकार है तो दूसरों को क्यों नहीं? आप इस पुण्य के काम को अपने तक ही क्यों सीमित रखना चाहते हैं? यह कैसी राजनीति है?

डा. अम्बेडकर ने कहा है कि भारत से छूआछूत, जाति व्यवस्था को खत्म करने और धार्मिक सौहार्द्र के लिए इनके बीच विवाह को प्रोत्साहित करना चाहिए। इन दिनों हिन्दुत्ववादी संगठन दलितों के वोट के लिए अम्बेडकर और छुआछूत मिटाने की बात तो बहुत कर रहे हैं पर अम्बेडकर का लिखा मानने को तैयार नहीं है। मान लेने से वे बांटने की राजनीति कैसे करेंगे? उनके इस फरेब से बाहर आना प्रेम और मानवता को बचाये रखने के लिए जरूरी है।

‘लव जेहाद’ के सन्दर्भ में हिन्दुत्ववादी संगठनों के ‘घृणा अभियान’ की सच्चाई यह भी है कि हिन्दू-मुलिम प्रेम या विवाह के ज्यादातर मामले जांच के बाद झूठे पाये गये। अभी हमारा समाज खुद इस मामले में इतना संकीर्ण है कि ऐसे प्रेम की जमीन ही बहुत कम है। यदि वास्तव में ऐसा हो रहा है तो यह समाज के विकास की, महिलाओे की आजादी की, और नफरत के बरख्श प्रेम के विस्तार का संकेत है, इसे रोकने की बजाय इसका स्वागत होना चाहिए। इसे रोकने वाली पिछड़ी सोच और राजनीति को पीछे का रास्ता दिखाना चाहिए। धर्म, जाति, देश से परे धरती पर प्रेम था, है, और रहेगा। प्रेम जि़न्दाबाद।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

ISSN 2394-093X
418FansLike
783FollowersFollow
73,600SubscribersSubscribe

Latest Articles